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रेहाना June 29, 2007

Posted by Jaydeep in बज़्मे उर्दू.
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यही वादी है वो हमदम जहाँ रेहाना रहती थी,
वो इस वादी कि शहज़ादी थी और शाहाना रहती थी,
कँवल का फूल थी, संसार से बेगाना रहती थी,
यही वादी है वो हमदम, जहाँ रेहाना रहती थी.

इन्हीं सहराओमें वो अपने गल्ले को चराती थी,
इन्हीं चश्मोमें वो हर रोज मुंह धोने को आती थी,
इन्हीं टिलो के दामन में वो आज़ादाना रहती थी,
यही वादी है वो हमदम, जहाँ रेहाना रहती थी.

खजूरो के तले वो जो खंडहर से झिलमिलाते है,
ये सब रेहाना के मासूम अफ़साने सूनाते है,
वो इन खंडहरो में इक दिन सूरते-अफ़साना रहती थी,
यही वादी है वो हमदम, जहाँ रेहाना रहती थी.

मेरे हमदम, ये नखलिस्तान एक दिन उसका मस्किन था,
इसी के खुर्मी-ए-आगोशमें उसका नशेमन था,
इसी शादाब वादी में वो बे-बाकाना रहती थी,
यही वादी है वो हमदम, जहाँ रेहाना रहती थी.

इसी वीराने में इक दिन बहिश्ते लहलहाती थी,
घटाएँ घिर के आती थी, हवाएँ मुस्कुराती थी,
के वो बनकर बहारे-जन्नते-वीराना रहती थी,
यही वादी है वो हमदम, जहाँ रेहाना रहती थी.

यही आबाद थी इक दिन मेरे इफ़कार की मलिका,
मेरे जज़बात की देवी, मेरे आशार की मलिका,
वो मलिका जो बारंगे-अज़मते-शाहाना रहती थी,
यही वादी है वो हमदम, जहाँ रेहाना रहती थी.

सबा शाखोंमे नखलिस्तान की जीस दम सरसराती है,
मुझे हर लहर से रेहाना की आवाज़ आती है,
यहीं रेहाना रहती थी, यहीं रेहाना रहती थी,
यही वादी है वो हमदम, जहाँ रेहाना रहती थी.

फज़ाएं गुंजती है, अब भी यूं वहशी तरानो से,
सूनो, आवाज़ सी आती है उन खाकी चट्टानो से,
कि जीनमें वो बारंगे-नग़मे-बेग़ाना रहती थी,
यही वादी है वो हमदम, जहाँ रेहाना रहती थी.

शमीमे-ज़ुल्फ से उसकी महक जाती थी कुल वादी,
निगाहे-मस्त से उसकी बहक जाती थी कुल वादी,
हवामें परफिशाँ रुहे-मय-ओ-मैखाना रहती थी,
यही वादी है वो हमदम, जहाँ रेहाना रहती थी.

गुदाज़े-इश्क़ से लबरेज़ था क़्ल्बे-हसीन उसका,
मगर आईना दरे-शर्म था, रु-ए-हसीं उसका,
खामोशी ने छिपाए नग़मा-ए-मस्ताना रहती थी,
यही वादी है वो हमदम, जहाँ रेहाना रहती थी.

उसे फूलोनें मेरी यादमें बेताब देखा है,
सितारों की नज़रने रातभर बे-ख्वाब देखा है,
वो शमा-ए-हुश्न थी पर सूरते-परवाना रहती थी,
यही वादी है वो हमदम, जहाँ रेहाना रहती थी.

पयामे-दर्दे-दिल ‘अख्तर’ दिये जाते हूँ वादी को,
सलामे-रुखसते-ग़मग़ीन किये जाता हूँ वादी को,
सलाम, ऎ वादी-ए-वीरान, जहाँ रेहाना रहती थी,
यही वादी है वो हमदम, जहाँ रेहाना रहती थी.

                                                      -अख्तर शिरानी